एका स्वयंघोषित तांत्रिकाने या अन्न आणि कपडे वाटप कार्यक्रमाचं आयोजन केलं होतं.
इससे मनुष्य की गतिविधियों और उपलब्धियों के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में विभिन्न रुझान उत्पन्न होते हैं।
राजस्थानमधील जोधपूर शहरातील चामुंडा देवी मंदिरात बॉम्ब ठेवला असल्याची अफवा पसरली आणि तिथे पोहोचलेल्या भाविकांमध्ये गोंधळ उडाला.
इतिहास॒स्य च वै॒ स॒ पुराण॒स्य च गा॒थानां च नाराशंसी॒नां च प्रियं॒ धा॒म भवति य॒ एवं॒ वे॒द ॥
गुप्तोत्तरकाल का इतिहास जानने के प्रमुख साधन राजकवियों द्वारा लिखित अपने संरक्षकों के जीवनचरित और स्थानीय इतिवृत्त हैं। जीवनचरितों में सबसे प्रसिद्ध बाणभट्टकृत ‘हर्षचरित’ में हर्ष की उपलब्धियों का वर्णन है। वाक्पतिराज के ‘गौडवहो’ में कन्नौज नरेश यशोवर्मा की, बिल्हण के ‘विक्रमांकदेवचरित’ में परवर्ती चालुक्य नरेश विक्रमादित्य की और सन्ध्याकर नंदी के ‘रामचरित’ में बंगाल शासक रामपाल की उपलब्धियों का वर्णन है। इसी प्रकार जयसिंह ने ‘कुमारपाल चरित’ में और हेमचंद्र ने ‘द्वयाश्रय काव्य’ में गुजरात के शासक कुमारपाल का, परिमल गुप्त (पद्मगुप्त) ने ‘नवसाहसांक चरित’ में परमार वंश का और जयानक ने ‘पृथ्वीराज विजय’ में पृथ्वीराज चौहान की उपलब्धियों का वर्णन किया है। चंदवरदाई के ‘पृथ्वीराज रासो’ से चहमान शासक पृथ्वीराज तृतीय के संबंध में महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ मिलती हैं। इन जीवनचरितों में तत्कालीन राजनीतिक स्थिति का पर्याप्त ज्ञान तो होता है, किंतु इन ग्रंथों में अतिशयोक्ति के कारण इन्हें शुद्ध ऐतिहासिक ग्रंथ नहीं माना जा सकता है।
जब ब्रिटिश लोग भारत पर राज कर रहे थे तो इसका आर्थिक लाभ ब्रिटेन को हो रहा था। भारत में सस्ते दामो में कच्चे काम का उत्पादन किया जाता था और उन्हें विदेशो में भेजा जाता था। उस समय भारतीयों को get more info भी ब्रिटिशो द्वारा बनायी गयी चीजो का ही उपयोग पड़ता था।
तुमच्या नाभीत घाण कशी आणि कुठून तयार होते, माहित आहे का?
‘तारुण्य और सौंदर्य से युक्त, सुवर्णहार, ताँबूल, पुष्प आदि से सुशोभित स्त्री तब तक अपने प्रियतम् से मिलने नहीं जाती, जब तक कि वह दशपुर के बने पट्टमय (रेशम) वस्त्रों के जोड़े को नहीं धारण करती। इस प्रकार स्पर्श करने में कोमल, विभिन्न रंगों से चित्रित, नयनाभिराम रेशमी वस्त्रों से संपूर्ण पृथ्वीतल अलंकृत है।’
) ने उपमितिभव प्रपंच कथा, जिनेश्वर सूरि ने कथाकोश प्रकरण और नवीं शताब्दी ई. में जिनसेन ने आदि पुराण और गुणभद्र ने उत्तर पुराण की रचना की। इन जैन ग्रंथों से तत्कालीन भारतीय सामाजिक और धार्मिक दशा पर प्रकाश पड़ता है।
भारत में प्रागैतिहासिक संस्कृतियाँ : मध्यपाषाण काल और नवपाषाण काल
तजक-ए-बाबरी ‘ती’ गद्यशैली की एक उत्कृष्ट रचना है।
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